इफिसियों ६:१०-१८
यह वचन का भाग - प्रभु में और उसके शक्ति के प्रभाव में बलवंत रहने के विषय में पौलुस लिखता हुवा शुरू करता है |
मसीह जीवन की एक बड़ी चुनौती यह है की हम मसीह में बल पाए | कुछ दिखने वाली वस्तुओं से बल पाना बहुत आसान है, (जैसे भोजन, बोर्नविटा, दवाई, इत्यादि) लेकेन विश्वास की जीवन में - प्रभु से बल पाना - वह भी किसी भी दिखने वाली वस्तुओ को सामने न पाते हुवे अनुभव करना - यह एक हकीकत है - यह एक सच्चे आत्मिक व्यक्ति की पहचान है | यह केवल नए नियम की एक शिक्षण नहीं है पर हम नहेमायाहा ८:१० में भी हम देखते है - "क्योंकि परमेश्वर का आनन्द तुम्हें सुदृढ़ बनायेगा।”
यह अनुभव को पाने के लिए पौलुस आगे लिखता है की - परमेश्वर के सारे हत्यार बांध लो |
यह वचन का भाग - प्रभु में और उसके शक्ति के प्रभाव में बलवंत रहने के विषय में पौलुस लिखता हुवा शुरू करता है |
मसीह जीवन की एक बड़ी चुनौती यह है की हम मसीह में बल पाए | कुछ दिखने वाली वस्तुओं से बल पाना बहुत आसान है, (जैसे भोजन, बोर्नविटा, दवाई, इत्यादि) लेकेन विश्वास की जीवन में - प्रभु से बल पाना - वह भी किसी भी दिखने वाली वस्तुओ को सामने न पाते हुवे अनुभव करना - यह एक हकीकत है - यह एक सच्चे आत्मिक व्यक्ति की पहचान है | यह केवल नए नियम की एक शिक्षण नहीं है पर हम नहेमायाहा ८:१० में भी हम देखते है - "क्योंकि परमेश्वर का आनन्द तुम्हें सुदृढ़ बनायेगा।”
यह अनुभव को पाने के लिए पौलुस आगे लिखता है की - परमेश्वर के सारे हत्यार बांध लो |
यह हथियार को पहने रखने के कुछ कारण इस वचन के भाग में हम इस प्रकार देखते है:
१. प्रभु में बल पाने - ६:१०
२. शैतान के युक्तियों के सामने स्थिर रहने - ६:११
३. हमारी लड़ाई शारीरिक नहीं (किसी इंसान से नहीं है) बल्कि आत्मिक होने के वजह से - ६:१२
४. बुरे दिनों को सामना कर सके - ६:१३
५. अंतिम स्थिरता पाने - ६:१३
हम में से कोई भी नहीं है, जो यहाँ बताई हुई विषयों पर सहारा या मदद लेना नहीं चाहता हो | हमारी निराशों या हमारी परिस्तिथियो से हम कमजोर हो गए हो, या हम कोई शारीरिक लड़ाई करते हुवे थक गए हो, कोई बुरे दिनों को सामना कर रहे हो, हम हमारे चल चलन को या हमारे ज़िन्दगी को स्थिर नहीं रख पा रहे हो, हमें इस हथियार जो प्रभु हमें देता है, पहने रखना है |
१. छुटकारे का शिरस्त्राण (उद्धार का टोप) - हमारा सर जो नियंत्रण को दिखता है - हम जब उद्धार का अनुभव पाते है - तब से प्रभु येशु हमारा प्रभु बनकर हमारी पूरी नियंत्रण करता है | (रोमियो १०:९,१०) उद्धार के अनुभव के बिना हम नष्ट हो सकते है जैसे बिना टोप के सिपाही |
२. धार्मिकता की झिलम - हमारा ह्रदय, छाती जो हमारे शरीर के मुख्य भाग को दर्शाता है - हम जब प्रभु के नज़रिये में धर्मी ठहराए जाते है, तबसे हमें दोषी ठहराने वाली विचारे दूर हो जाती है और हम उसके संतान नामकी पदवी पाते है | २ कुरिन्थियों ५:२१ कहती है - हम प्रभु मसीह में होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन गए है | कितना आशीषित अनुभव है?
(आगे देखिये दूसरे भाग में .....To be continued... in Part 2)
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