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Showing posts from April, 2017

जंगली बीज का दृष्टांत

मत्ती 13:29-30 “वह बोला, ‘नहीं, क्योंकि जब तुम खरपतवार उखाड़ोगे तो उनके साथ, तुम गेहूँ भी उखाड़ दोगे। जब तक फसल पके दोनों को साथ-साथ बढने दो, फिर कटाई के समय में फसल काटने वालों से कहूँगा कि पहले खरपतवार की पुलियाँ बना कर उन्हें जला दो, और फिर गेहूँ को बटोर कर मेरे खते में रख दो।’” कई बार परमेश्वर हमारे बाधाओं को अनुमति देता है ताकि हमारा विश्वास उखाड़ न जाए। भजन संहिता इस प्रकार गाता है -  "मेरे लिये संकट अच्छ बन गया था। मैंने तेरी शिक्षाओं को सीख लिया। (भजन संहिता ११९:७१)" कितने बार हम हमारे जीवन में प्रभु को हमारे संकटों और दुखों के बदले में धन्यवाद् कहते है? हम अपने जीवन के मुसीबत और तकलीफों के लिए प्रभु का शुक्रिया अदा करना सीखें जिसके बगैर हम हमारे पिता परमेश्वर और उसके प्रेम को सही तरह से समज और सीख नहीं पाते। हमे पूरी तरह से विश्वास करना है की एक फसल का मौसम बहुत जल्द आ जाएगा, जहां जंगली पौधे या खरपतवार पहले तो इकट्ठा किया जाएगा (जिस वजह से हमें शायद और निराशा होगी) लेकिन उन्हें हमेशा के लिए जला दिया जाएगा और हमारे जीवनों को उसके निज हिस्सा माना जाएगा !!

Parable of the Weeds

Matthew 13:29-30 “‘No,’ he answered, ‘because while you are pulling the weeds, you may uproot the wheat with them. Let both grow together until the harvest. At that time I will tell the harvesters: First collect the weeds and tie them in bundles to be burned; then gather the wheat and bring it into my barn.’” Many a times God allows the hurdles, pains and obstacles in our life so that our faith is not uprooted. The Psalmist says - " It is good for me that I have been afflicted; that I might learn thy statues." (Psalms 119:71 - KJV) How many times do we really are grateful to God for them? Let us learn to thank God for the obstacles and hindrances in our lives without which we would have probably not known Him well. We must fully believe that, a season of harvest has been planned by our Master and it will come very soon, wherein although the weeds would be collected first, (which may distress us even more) but those will be burned forever. We would be conside

परमेश्वर के सम्पूर्ण कवच - भाग १ - The Full Armor of God - Part 1

इफिसियों ६:१०-१८ यह वचन का भाग - प्रभु में और उसके शक्ति के प्रभाव में बलवंत रहने के विषय में पौलुस लिखता हुवा शुरू करता है | मसीह जीवन की एक बड़ी चुनौती यह है की हम मसीह में बल पाए | कुछ दिखने वाली वस्तुओं से बल पाना बहुत आसान है, (जैसे भोजन, बोर्नविटा, दवाई, इत्यादि) लेकेन विश्वास की जीवन में - प्रभु से बल पाना - वह भी किसी भी दिखने वाली वस्तुओ को सामने न पाते हुवे अनुभव करना - यह एक हकीकत है - यह एक सच्चे आत्मिक व्यक्ति की पहचान है | यह केवल नए नियम की एक शिक्षण नहीं है पर हम नहेमायाहा ८:१० में भी हम देखते है - "क्योंकि परमेश्वर का आनन्द तुम्हें सुदृढ़ बनायेगा।” यह अनुभव को पाने के लिए पौलुस आगे लिखता है की - परमेश्वर के सारे हत्यार बांध लो | यह हथियार को पहने रखने के कुछ कारण इस वचन के भाग में हम इस प्रकार देखते है: १. प्रभु में बल पाने - ६:१० २. शैतान के युक्तियों के सामने स्थिर रहने - ६:११  ३. हमारी लड़ाई शारीरिक नहीं (किसी इंसान से नहीं है) बल्कि आत्मिक होने के वजह से - ६:१२ ४. बुरे दिनों को सामना कर सके - ६:१३  ५. अंतिम स्थिरता पाने - ६:१३  हम में